28 सितम्बर जन्म दिन विशेष: ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे से आजादी की चिंगारी जलाई थी Bhagat Singh ने
इन तीनों को 24 मार्च, 1931 को फाँसी देने का आदेश जारी कर दिया गया। भगतसिंह की फाँसी का देश भर में व्यापक विरोध हो रहा था। इससे डरकर धूर्त अंग्रेजों ने एक दिन पूर्व 23 मार्च की शाम को इन्हें फाँसी दे दी और इनके शवों को परिवारजनों की अनुपस्थिति में जला दिया; पर इस बलिदान ने देश में क्रान्ति की ज्वाला को और धधका दिया। उनका नारा ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ आज भी सभा-सम्मेलनों में ऊर्जा का संचार कर देता है।
क्रान्तिवीर भगतसिंह (Bhagat Singh) का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को ग्राम बंगा, (जिला लायलपुर, पंजाब) (Bana, (District Lyallpur, Punjab)) में हुआ था। उसके जन्म के कुछ समय पूर्व ही उसके पिता किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह जेल से छूटे थे। अतः उसे भागों वाला अर्थात भाग्यवान माना गया। घर में हर समय स्वाधीनता आन्दोलन (independence movement) की चर्चा होती रहती थी। इसका प्रभाव भगतसिंह के मन पर गहराई से पड़ा।
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जलियाँवाला बाग से खून में सनी मिट्टी को एक बोतल में भर लाया
13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग, अमृतसर (Jallianwala Bagh, Amritsar) में क्रूर पुलिस अधिकारी डायर ने गोली चलाकर हजारों नागरिकों को मार डाला। यह सुनकर बालक भगतसिंह वहाँ गया और खून में सनी मिट्टी को एक बोतल में भर लाया। वह प्रतिदिन उसकी पूजा कर उसे माथे से लगाता था।
समाचार पत्र ‘प्रताप’में काम किया
भगतसिंह का विचार था कि धूर्त अंग्रेज अहिंसक आन्दोलन से नहीं भागेंगे। अतः उन्होंने आयरलैण्ड, इटली, रूस (Ireland, Italy, Russia) आदि के क्रान्तिकारी आन्दोलनों का गहन अध्ययन किया। वे भारत में भी ऐसा ही संगठन खड़ा करना चाहते थे। विवाह का दबाव पड़ने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और कानपुर में स्वतन्त्रता सेनानी गणेशशंकर विद्यार्थी (Freedom fighter Ganeshshankar Vidyarthi) के समाचार पत्र ‘प्रताप’ में काम करने लगे। कुछ समय बाद वे लाहौर पहुँच गये और ‘नौजवान भारत सभा’ (‘Naujawan Bharat Sabha’) बनायी। भगतसिंह ने कई स्थानों का प्रवास भी किया। इसमें उनकी भेंट चन्द्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) जैसे साथियों से हुई। उन्होंने कोलकाता जाकर बम बनाना भी सीखा।
सांडर्स को पुलिस कार्यालय के सामने ही गोलियों से भूना
1928 में ब्रिटेन से लार्ड साइमन के नेतृत्व में एक दल स्वतन्त्रता की स्थिति के अध्ययन के लिए भारत आया। लाहौर में लाला लाजपतराय (Lala Lajpat Rai) के नेतृत्व में इसके विरुद्ध बड़ा प्रदर्शन हुआ। इससे बौखलाकर पुलिस अधिकारी स्काट तथा सांडर्स ने लाठीचार्ज करा दिया। वयोवृद्ध लाला जी के सिर पर इससे भारी चोट आयी और वे कुछ दिन बाद चल बसे। इस घटना से क्रान्तिवीरों का खून खौल उठा। उन्होंने कुछ दिन बाद सांडर्स को पुलिस कार्यालय के सामने ही गोलियों से भून दिया। पुलिस ने बहुत प्रयास किया; पर सब क्रान्तिकारी वेश बदलकर लाहौर से बाहर निकल गये। कुछ समय बाद दिल्ली में केन्द्रीय धारासभा का अधिवेशन (session of central assembly) होने वाला था। क्रान्तिवीरों ने वहाँ धमाका करने का निश्चय किया। इसके लिए भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त चुने गये।
‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारे लगाते हुए पर्चे फेंके
निर्धारित दिन ये दोनों बम और पर्चे लेकर दर्शक दीर्घा में जा पहुँचे। भारत विरोधी प्रस्तावों पर चर्चा शुरू होते ही दोनों ने खड़े होकर सदन मे बम फेंक दिया। उन्होंने ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ (‘Inquilab Zindabad’) के नारे लगाते हुए पर्चे फेंके, जिन पर क्रान्तिकारी आन्दोलन का उद्देश्य लिखा था। पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया। न्यायालय में भगतसिंह ने जो बयान दिये, उससे सारे विश्व में उनकी प्रशंसा हुई। भगतसिंह पर सांडर्स की हत्या का भी आरोप था।
धूर्त अंग्रेजों ने एक दिन पूर्व 23 मार्च को इन्हें फाँसी दे दी
उस काण्ड में कई अन्य क्रान्तिकारी भी शामिल थे; जिनमें से सुखदेव और राजगुरु (Sukhdev and Rajguru) को पुलिस पकड़ चुकी थी। इन तीनों को 24 मार्च, 1931 को फाँसी देने का आदेश जारी कर दिया गया। भगतसिंह की फाँसी का देश भर में व्यापक विरोध हो रहा था। इससे डरकर धूर्त अंग्रेजों ने एक दिन पूर्व 23 मार्च की शाम को इन्हें फाँसी दे दी और इनके शवों को परिवारजनों की अनुपस्थिति में जला दिया; पर इस बलिदान ने देश में क्रान्ति की ज्वाला को और धधका दिया। उनका नारा ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ आज भी सभा-सम्मेलनों में ऊर्जा का संचार कर देता है।
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