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Air pollution and Weight : सांसों के साथ बढ़ता वजन, प्रदूषण का नया दुष्प्रभाव

Air pollution and Weight

Air pollution and Weight

जयपुर। दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण (Air pollution) का स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। खराब वायु गुणवत्ता का असर केवल श्वसन और हृदय रोगों तक सीमित नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह हार्मोनल असंतुलन, वजन बढ़ने (Weight gain) और मोटापे जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।


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वायु गुणवत्ता सूचकांक के चिंताजनक आंकड़े

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) (Central Pollution Control Board (CPCB)) के मुताबिक, दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 371 दर्ज किया गया, जो ‘बेहद खराब’ श्रेणी में आता है। आनंद विहार, बवाना, और जहांगीरपुरी जैसे क्षेत्रों में यह स्तर 400-450 के बीच रहा। ये आंकड़े दैनिक जीवन और स्वास्थ्य पर भारी खतरे का संकेत देते हैं।


शारीरिक गतिविधियों पर प्रभाव
वायु प्रदूषण से मेटाबॉलिक सिस्टम बिगड़ (Metabolic system deteriorates due to air pollution) सकता है, जिसका सीधा असर हार्मोन्स पर पड़ता है। इससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ता है, जो वजन बढ़ने और मोटापे का कारण बनता है। प्रदूषण के कारण खांसी, सांस लेने में तकलीफ और थकान जैसी समस्याएं लोगों की शारीरिक गतिविधियों को कम कर देती हैं। इससे लोग अधिक सुस्त जीवनशैली अपनाने लगते हैं, जो वजन बढ़ाने में योगदान करती है।


वैज्ञानिक शोध क्या कहते हैं?
हाल ही में बीएमसी पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक मेटा-विश्लेषण से पता चला कि वायु प्रदूषण में मौजूद पीएम (पार्टिकुलेट मैटर), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे तत्व वसा ऊतकों में सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ाते (increasing tension) हैं। यह मेटाबॉलिक सिस्‍टम को बाधित करता है और मोटापे की संभावना को बढ़ाता है।


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
डॉ. विकास मित्तल का मानना है कि वायु प्रदूषण और मेटाबॉलिक सिस्‍टम के बीच सीधा संबंध साबित करने के लिए अभी और शोध की जरूरत है। लेकिन यह स्पष्ट है कि प्रदूषण स्वास्थ्य पर बहुआयामी प्रभाव (Multidimensional effects of pollution on health) डालता है।


सख्त पर्यावरणीय नियम लागू करना
वायु प्रदूषण केवल पर्यावरण का संकट नहीं है; यह हमारे स्वास्थ्य और जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। हार्मोनल असंतुलन और मोटापे जैसी समस्याएं प्रदूषण के व्यापक प्रभावों को उजागर करती हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य मिल सके।


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