Jaipuri Quilts: जयपुरी रजाइयों का सालाना कारोबार 300 करोड़, इस खासियत के चलते देश-विदेश में बढ़ी डिमांड
जयपुर रजाई मजदूर यूनियन के अध्यक्ष सलीम राठौड़ ने कहा कि जयपुरी रजाई का काम करीब 80 साल पुराना है। इसे तैयार करने में रूई की 4-5 बार पिंदाई की जाती है। महंगाई के बावजूद इस काम में मजदूरी पूरी नहीं मिल पाती है। सरकार को इसे लघु उद्योग का दर्जा देना चाहिए और कारीगरों को लोन जैसी सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। जयपुरी रजाइयों की बिक्री जयपुर के प्रमुख बाजारों में जैसे चौड़ा रास्ता, हवामहल बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार और सांगानेर में खूब हो रही है। इसके साथ ही इन रजाइयों का निर्यात सीतापुरा से भी किया जा रहा है। बाजार में सिंगल बेड रजाइयों की कीमत 500 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक है। डबल बेड रजाइयों की कीमत 1000 रुपए से 2000 रुपए तक होती है।

जयपुर। जयपुरी रजाइयां (Jaipuri quilts) देश-विदेश में अपनी विशेषता और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं। इन रजाइयों का सालाना घरेलू कारोबार 300 से 400 करोड़ रुपए के बीच है, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। हालांकि इस क्षेत्र में व्यापार को और अधिक बढ़ावा देने के लिए क्वालिटी कंट्रोल के नियम बनाए जाने और जीएसटी में रियायत मिलने की आवश्यकता है।
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यहां बनती हैं रजाइयां
जयपुरी रजाइयों का निर्माण मुख्य रूप से राजधानी के बासबदनपुरा, गंगापोल, घाटगेट, आमेर, जयसिंहपुरा खोर और दिल्ली रोड जैसे क्षेत्रों में हो रहा है। यहां छोटे-छोटे कारखानों में रूई की पिंदाई और भराई (Milling and filling of cotton in small factories) का काम किया जाता है। कई परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
नहीं मिल पा रही पूरी मजदूरी
जयपुर रजाई मजदूर यूनियन के अध्यक्ष सलीम राठौड़ (Salim Rathore, President of Jaipur Razai Mazdoor Union) ने कहा कि जयपुरी रजाई का काम करीब 80 साल पुराना है। इसे तैयार करने में रूई की 4-5 बार पिंदाई की जाती है। महंगाई के बावजूद इस काम में मजदूरी पूरी नहीं मिल पाती है। सरकार को इसे लघु उद्योग का दर्जा देना चाहिए और कारीगरों को लोन जैसी सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए।
जयपुर के प्रमुख बाजार और निर्यात
जयपुरी रजाइयों की बिक्री जयपुर के प्रमुख बाजारों में जैसे चौड़ा रास्ता, हवामहल बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार और सांगानेर (Chauda Rasta, Hawamahal Bazaar, Bapu Bazaar, Nehru Bazaar and Sanganer) में खूब हो रही है। इसके साथ ही इन रजाइयों का निर्यात सीतापुरा से भी किया जा रहा है। बाजार में सिंगल बेड रजाइयों की कीमत 500 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक है। डबल बेड रजाइयों की कीमत 1000 रुपए से 2000 रुपए तक होती है।
सालाना कारोबार 300 से 400 करोड़ रुपए का
जयपुर रजाई व्यापार महासंघ के उपाध्यक्ष विवेक भारद्वाज (Vivek Bhardwaj, Vice President of Jaipur Quilt Trade Federation) ने कहा कि जयपुरी रजाइयों का सालाना कारोबार 300 से 400 करोड़ रुपए का है। सरकार को इन रजाइयों की क्वालिटी कंट्रोल को लेकर नियम बनाने चाहिए और जीएसटी में छूट देनी चाहिए। इससे इस उद्योग में जुड़े लोगों को राहत मिलेगी और कारोबार को और गति मिलेगी।
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