One Nation One Election: एक देश-एक चुनाव की ओर बढ़ रहा भारत, कैबिनेट की मिली मंजूरी

आखिरी बार 1967 में देश में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के तत्कालीन फॉर्मेट के तहत चुनाव हुए। तब उत्तर प्रदेश (जिसे पहले यूनाइटेड प्रोविंस कहते थे) को छोड़कर पूरे देश में एक चरण में चुनाव हुए। यूपी में उस वक्त भी 4 चरण में चुनाव कराने पड़े थे। 1967 का इलेक्शन आजादी के बाद चौथा चुनाव था। तब 520 लोकसभा सीटों और 3563 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले गए थे। इस वक्त तक सत्ता में केवल कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद न सिर्फ इंदिरा गांधी को सहयोगियों के विरोध से जूझना पड़ रहा था, बल्कि कांग्रेस के खिलाफ देश में भी विरोधी लहर चलने लगी थी।

नई दिल्ली। एक देश-एक चुनाव से जुड़ा बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है। सरकार का प्रयास है कि 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा और निकाय चुनाव कराए जाएं। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता (Presidency of Ramnath Kovind) में बनी कमेटी ने इस पर कई सुझाव भी दिए हैं। कमेटी ने उन 7 देशों की चुनाव प्रणाली का अध्ययन भी किया है जहां एक साथ चुनाव होते हैं।


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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बिल को मंजूरी दी

राजनीतिक चर्चाओं के दौरान एक बात अक्सर कही जाती है कि भारत चुनावों वाला देश है। यहां हर साल किसी न किसी हिस्से में चुनाव होते ही रहते हैं। लेकिन अब ये बीते दिनों की बात हो जाएगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक देश-एक चुनाव (One Nation One Election) से जुड़े बिल को मंजूरी दे दी है। संभावना जताई जा रही है कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस बिल को पेश कर दिया जाएगा। लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ही भाजपा और उसके सहयोगी दल का संख्या बल ज्यादा है।


सहमति बनाना चाहती है सरकार
ऐसे में बिल को पास कराने में भी कोई समस्या नहीं आएगी। लेकिन सरकार चाहती है कि बिल पर सभी दलों की एक राय बनाई जाए और जरूरी संशोधनों के बाद ही बिल को पारित किया जाए।


आजादी के समय ही इसकी नींव रख दी गई थी
वैसे एक देश-एक चुनाव की चर्चा भले ही बीते कुछ सालों में ज्यादा सुनाई देने लगी हो। लेकिन भारत में यह पहली बार नहीं होने जा रहा है। 1947 में देश की आजादी के समय ही इसकी नींव रख दी गई थी। 1952 में जब देश में पहली बार चुनाव हुए, तब भी लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए एक साथ वोट डाले गए। अगले 4 चुनावों तक ऐसा ही चलता रहा। लेकिन इसके बाद कुछ विषमताएं पैदा होने लगीं।


1967 में आखिरी बार हुए चुनाव
आखिरी बार 1967 में देश में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के तत्कालीन फॉर्मेट के तहत चुनाव हुए। तब उत्तर प्रदेश (जिसे पहले यूनाइटेड प्रोविंस कहते थे) को छोड़कर पूरे देश में एक चरण में चुनाव हुए। यूपी में उस वक्त भी 4 चरण में चुनाव कराने पड़े थे। 1967 का इलेक्शन आजादी के बाद चौथा चुनाव था। तब 520 लोकसभा सीटों और 3563 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले गए थे। इस वक्त तक सत्ता में केवल कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद न सिर्फ इंदिरा गांधी को सहयोगियों के विरोध से जूझना पड़ रहा था, बल्कि कांग्रेस के खिलाफ देश में भी विरोधी लहर चलने लगी थी।


6 दशक बाद फिर कोशिश
करीब 6 दशक के बाद अब देश फिर से वन नेशन-वन इलेक्शन की तरफ बढ़ रहा है। लेकिन ये सफर भी आसान नहीं था। रिपोर्ट तैयार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी ने न सिर्फ आजादी के बाद हुए चुनावों की कार्यप्रणाली को समझा, बल्कि दुनिया के उन देशों का भी अध्ययन किया, जहां एक साथ चुनाव होते हैं। इन देशों में स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया, फिलिपिंस और जापान शामिल है।


दूसरे देशों से भी ली गई सीख
रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण अफ्रीका में नेशनल असेंबली और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं। लेकिन निकाय चुनाव अलग से कराए जाते हैं। स्वीडन में संसद, काउंटी काउंसिल, निकाय चुनाव सभी चार साल में एक साथ कराए जाते हैं। इंडोनेशिया ने भी वन नेशन-वन इलेक्शन के तहत चुनाव कराने शुरू कर दिए हैं। यहां राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं। 14 फरवरी 2024 को एक साथ चुनाव कराकर इंडोनेशिया दुनिया का पहला देश बन गया था, जहां एक दिन में 200 मिलियन लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। भारत की आबादी भी करीब 140 करोड़ है। अगर भारत में एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो यह भी अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड होगा।


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