Rajasthan News: चिकित्सा विज्ञान में राजस्थान का ऐतिहासिक कदम, बी-पॉजिटिव पति को ए-पॉजिटिव पत्नी ने दिया लिवर

यह ऐतिहासिक सफलता उन मरीजों के लिए एक नई उम्मीद है, जिन्हें मैचिंग ब्लड ग्रुप का डोनर नहीं मिल पाता। इस तकनीक से अब लिवर ट्रांसप्लांट की संभावनाएं और अधिक बढ़ गई हैं। डॉक्टरों की इस टीम ने चिकित्सा क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है, जिससे भविष्य में कई मरीजों को जीवनदान मिल सकेगा।

जयपुर। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में राजस्थान ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। राजस्थान में पहली बार एबीओ इनकंपेटिबल (बिना ब्लड ग्रुप मैचिंग) लिवर ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया गया है। जयपुर के सीतापुरा स्थित एक निजी अस्पताल में सेंटर फॉर डाइजेस्टिव साइंसेज की विशेषज्ञ टीम ने यह ऐतिहासिक सर्जरी की।


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44 वर्षीय मरीज को मिला नया जीवन

बूरथल निवासी 44 वर्षीय मदन गोपाल मीना लंबे समय से लिवर की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। डेढ़ साल से अधिक समय तक लगातार अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी स्थिति लिवर फेलियर तक पहुंच गई थी। डॉक्टरों ने लिवर ट्रांसप्लांट को ही अंतिम विकल्प बताया, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी कि उनके ब्लड ग्रुप बी-पॉजिटिव का कोई उपयुक्त डोनर नहीं मिल रहा था।


पत्नी बनीं डोनर, नई तकनीक से किया ट्रांसप्लांट
मरीज की पत्नी बसना देवी, जिनका ब्लड ग्रुप ए-पॉजिटिव था, उन्होंने अपने पति को लिवर दान करने का फैसला किया। लेकिन, ब्लड ग्रुप न मिलने के कारण पारंपरिक ट्रांसप्लांट संभव नहीं था। ऐसे में विशेषज्ञ टीम ने प्लाज्मा फेरेसिस तकनीक का उपयोग किया। इस प्रक्रिया में मरीज के शरीर से ‘ए’ एंटीबॉडीज को हटाकर डोनर का लिवर स्वीकार्य करने योग्य बनाया गया। इसके साथ ही भविष्य में किसी प्रकार की जटिलता न हो इसके लिए इम्यूनो मॉड्यूलेशन थेरेपी दी गई।


नए मरीजों के लिए खुला रास्ता
यह ऐतिहासिक सफलता उन मरीजों के लिए एक नई उम्मीद है, जिन्हें मैचिंग ब्लड ग्रुप का डोनर नहीं मिल पाता। इस तकनीक से अब लिवर ट्रांसप्लांट की संभावनाएं और अधिक बढ़ गई हैं। डॉक्टरों की इस टीम ने चिकित्सा क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है, जिससे भविष्य में कई मरीजों को जीवनदान मिल सकेगा।


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