जालौर। होली के दूसरे दिन जहां देश भर में धुलंडी पर्व मनाया जाएगा। वहीं जालौर शहर में ऐतिहासिक घोटा गैर खेली जाएगी। शहर के बड़े चौहटे पर वर्षों से चली आ रही घोटा गैर खेलने की परंपरा है। इसकी खासियत यह है कि बाबैया ढोल जैसे ही बजने लगता है तो युवाओं के कदम गैर में खेलने के लिए थिरकने लगते हैं। होली के दूसरे दिन युवाओं को बाबैया ढोल का इंतजार रहता है, जैसे ही ढोल गैर में पहुंचता है तो लोग उत्साह, जोश से नृत्य करने लगते हैं।
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परंपरा कई सालों पुरानी
जानकारी के मुताबिक, होली पर गैर नृत्य आम साधारण गांव में भी होता है। लेकिन भीनमाल की ऐतिहासिक घोटा गैर सालों से भीनमाल का इतिहास रही है। गोटा गैर कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवा और बुजुर्ग हाथों में लठ लेकर पहुंचते हैं और शहर के बड़े चोहटे पर इसका आयोजन होता है, जिसमें हाथों में डंडे लेकर ढोल पर बड़ी संख्या में युवा नृत्य करते हैं। इसकी परंपरा कई सालों पुरानी है। देश भर में होली के दूसरे दिन धूलंडी बनाई जाती है। लेकिन भीनमाल का इतिहास रहा है कि यहां इस घोटा गैर नृत्य को देखने के लिए शहर सहित आसपास के गांव से भी लोग पहुंचते हैं।
यह रहता है घोटा गैर का क्रम
पुराने समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार आज भी घौटा गैर सर्वप्रथम चण्डीनाथ महादेव मंदिर से प्रारंभ होकर सात निंबड़ी, खारी रोड, देतरियों का चौहटा, गणेश चौक होते हुए बड़ा चौहटा पहुंचती है। वर्षों पूर्व भी यही क्रम चलता था। इससे पूर्व दिनभर विभिन्न जातियों, मौजिज, गणमान्य लोगों के यहां ढोल ले जाकर करबा पीने की रस्म निभाई जाती है। चंडीनाथ महादेव मंदिर से जैसे ही ढोल निकलता है तो खारी रोड पर भारी संख्या में लोगों की भीड़ जुट जाती है। स्थानीय जाकोब तालाब के पास रहने वाले मीर समाज के लोग बताते हैं कि आथमणा वास में निवास करने वाले मीर समाज के लोग इस ढोल को पिछले 62 वर्षों से बजाते आ रहे हैं। मान्यताओं के अनुसार सैकड़ों वर्ष पुराने इस ढोल को वर्षों पहले ठाकुरों ने मीर समाज को सौंपा था। इस ढोल को सिर्फ होली पर्व पर ही बाहर निकाला जाता है। बाकी के दिनों में इस ढोल को बाहर नहीं निकाला जाता है।
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Mahendra Mangal