Ranthambore Fort: रणथंभौर किले में ‘कनकटी’ की जगह ले रही नई बाघिन, ‘बादशाहत’ कर रही कायम

त्रिनेत्र गणेश मंदिर मार्ग पर एरोहैड और उसके शावक का दिखा मूवमेंट, फिर सामने आई वन विभाग की लापरवाही हाल ही में बाघिन ‘रिद्धि’ की गतिविधि किले के भीतर देखी गई, जिसके बाद सुरक्षा के लिहाज से कुछ समय के लिए किले में प्रवेश बंद कर दिया गया था। सोमवार को जब वन विभाग ने पुष्टि की कि बाघ अब वहां मौजूद नहीं हैं, तब जाकर आम लोगों को दोबारा एंट्री की अनुमति दी गई।

सवाई माधोपुर। रणथंभौर के ऐतिहासिक किले में बाघों और पर्यटकों के बीच लगातार बढ़ रहे टकराव के चलते अब वन विभाग के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। हाल ही में दो लोगों की मौत के बाद युवा बाघिन ‘कनकटी’ को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन इसके बावजूद यह समस्या थमने का नाम नहीं ले रही।


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बाघिन ‘रिद्धि’ की गतिविधि किले के भीतर

त्रिनेत्र गणेश मंदिर मार्ग पर एरोहैड और उसके शावक का दिखा मूवमेंट, फिर सामने आई वन विभाग की लापरवाही
हाल ही में बाघिन ‘रिद्धि’ की गतिविधि किले के भीतर देखी गई, जिसके बाद सुरक्षा के लिहाज से कुछ समय के लिए किले में प्रवेश बंद कर दिया गया था। सोमवार को जब वन विभाग ने पुष्टि की कि बाघ अब वहां मौजूद नहीं हैं, तब जाकर आम लोगों को दोबारा एंट्री की अनुमति दी गई।


शिकार की तलाश में आते हैं बाघ
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि किले के अंदर बाघों की मौजूदगी का एक बड़ा कारण वहां की बढ़ती शिकार प्रजातियों की संख्या है। किले में कई छोटे दुकानदार हो गए हैं, जिनसे पर्यटक खाद्य सामग्री जैसे- चना, आटा आदि खरीदकर जीवों को खिलाते हैं। इससे वहां लंगूर, सांभर और जंगली सूअर जैसे जानवरों की संख्या बढ़ी है, जो बाघों को आकर्षित करते हैं।


किले में बाघों की क्यों बढ़ी आवाजाही
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में पूर्व वन्यजीव अभिरक्षक बलेंदु सिंह के हवाले से रणथंभौर किले में बाघों के आवागमन को लेकर जानकारी दी गई है। उनके अनुसार, ‘किले में बाघों की उपस्थिति बढ़ने का मुख्य कारण वहां शिकार प्रजातियों की बढ़ती संख्या है। इंसानों द्वारा छोड़ा गया खाना इन जानवरों को आकर्षित करता है, जिससे वन्यजीवों की प्राकृतिक आदतों में बदलाव आ रहा है। यह न केवल पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ रहा है, बल्कि इंसान और जानवरों के बीच टकराव की आशंका भी बढ़ा रहा है।’


दीवारें टूटने से आसानी से आ रहे बाघ
टाइगर वॉच संस्था से जुड़े संरक्षण जीवविज्ञानी धर्मेंद्र खंडाल ने बताया कि किले की दीवारों में कई जगहों पर संरचनात्मक क्षति हुई है, जिससे बाघों का अंदर आना और भी आसान हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक श्रद्धालुओं और पर्यटकों द्वारा जानवरों को खाना खिलाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। यह न केवल इंसानों की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि वन्यजीवों के संरक्षण के लिए भी गंभीर चुनौती है।


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