Tiger: जंगल अब बाघों के लिए पड़ने लगे छोटे, गांवों का विस्थापन बना चुनौती
प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन बाघों के घर कहे जाने वाले जंगलों में रहने वाले लोगों का अभी तक विस्थापन नहीं हो सका है। इस कारण नए बाघ अपनी टेरेटरी नहीं बना पा रहे हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में बाघों की संख्या 139 है। वहीं लगातार इनकी संख्या बढ़ रही है। कई बार बाघों द्वारा ग्रामीणों पर हमले की खबरें भी सामने आई हैं। लेकिन अभी तक 111 गांवों और उनमें बसे 15 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों का टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों से विस्थापन नहीं हो सका है। यही कारण है कि बाघों की संख्या को बढ़ाकर खुशी जताने वाले वन विभाग के वन्यजीव प्रबंधन पर अंगुली उठ रही है। वन विभाग से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान अब तेजी से बाघस्थान में बदल रहा है। लेकिन वन विभाग बाघों के लिए जंगलों को और नहीं बढ़ा सका है।

करन तिवारी/जयपुर। प्रदेश में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिसके कारण राजस्थान अब बाघस्थान बनता जा रहा है। लेकिन राजस्थान के जंगल अब बाघों के लिए छोटे पड़ने लगे (The forests are now becoming small for tigers) है। जिसके कारण बाघ जंगलों को छोड़ बाहर निकल रहे है। राजस्थान के टाइगर रिजर्व में अभी भी 111 गांवों के ग्रामीण परिवारों के साथ बाघ एक साथ रह रहे है।
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प्रदेश के जंगलों में एक साथ रह रहे बाघ और ग्रामीण
प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन बाघों के घर कहे जाने वाले जंगलों में रहने वाले लोगों का अभी तक विस्थापन नहीं हो सका है। इस कारण नए बाघ अपनी टेरेटरी नहीं बना पा रहे हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में बाघों की संख्या 139 है। वहीं लगातार इनकी संख्या बढ़ रही है। कई बार बाघों द्वारा ग्रामीणों पर हमले की खबरें भी सामने आई हैं। लेकिन अभी तक 111 गांवों और उनमें बसे 15 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों का टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों से विस्थापन नहीं (No displacement from core areas of Tiger Reserve) हो सका है। यही कारण है कि बाघों की संख्या को बढ़ाकर खुशी जताने वाले वन विभाग के वन्यजीव प्रबंधन पर अंगुली उठ रही है। वन विभाग से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान अब तेजी से बाघस्थान में बदल रहा है। लेकिन वन विभाग बाघों के लिए जंगलों को और नहीं बढ़ा सका है।
111 गांवों और उनमें बसे है 15 हजार से ज्यादा ग्रामीण
वन विभाग से जुड़े अधिकारीयों का कहना है की प्रदेश में बाघों का आकड़ा बढ़कर 139 हो गया है। प्रदेश के रणथंभौर, सरिस्का और मुकंदरा के बाद अब रामगढ़ विषधारी और धौलपुर टाइगर रिजर्व भी बन गए हैं। जल्द कुंभलगढ़ भी टाइगर रिजर्व का दर्जा पा लेगा। वन विभाग का दावा है कि बाघ धौलपुर से मुकंदरा तक 400 किलोमीटर के कॉरिडोर में स्वछंद घूमते दिखाई देंगे। पर हकीकत कुछ और दिख रही है। जैसे ही बाघ 100 के पार हुए वैसे ही उनको जंगल छोटे पड़ने लगे। ग्रामीणों से उनका संघर्ष बढ़ा। उनकी सुरक्षा कमजोर होने और शिकार- जहरखुरानी की घटनाओं की आशंका भी बढ़ गई है। और बीतों दिनों ऐसा मामला भी सामने आ चुका है। सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे बड़ा कारण टाइगर रिजर्व से गांवों का विस्थापन नहीं होना है।
गांवों का विस्थापन बना वन विभाग के लिए चुनौती
गौरतलब है कि प्रदेश पांचों टाइगर रिजर्व में 111 गांव और उनमें 15 हजार से ज्यादा परिवार रह रहे हैं। यही कारण है कि बाघों की आबादी बढ़ने के साथ ही जंगल छोटा पड़ने लगा है। सरिस्का का एसटी 2402 जंगलों से बहार निकला था। इससे पहले एक बाघ सरिस्का से बहार निकल हरियाणा तक पहुंच गया था। वहीं अभी 2 बाघों ने जमवारामगढ़ में डेरा डाल रखा है। रणथंभौर में दर्जनभर से ज्यादा बाघ पैराफेरी पर घूम रहे हैं। ऐसे में अब वन विभाग के अधिकारीयों का कहना है की यदि विभाग गांवों के विस्थापन में तेजी दिखाता है तो बाघों को बढ़ा जंगल मिल सकेगा और वहां होने वाली घटनाओं पर विराम लग सकेगा।
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