Tiger Reserve: बाघों के लिए जंगल पड़ने लगा है छोटा, ग्रामीणों को मंजूर नहीं है विस्थापन पैकेज

प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन बाघों के घर कहे जाने वाले जंगलों में रहने वाले लोगों का अभी तक विस्थापन नहीं हो सका है। इस कारण नए बाघ अपनी टेरेटरी नहीं बना पा रहे हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में बाघों की संख्या 139 है, वहीं इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। कई बार बाघों द्वारा ग्रामीणों पर हमले की खबरें भी सामने आई हैं। लेकिन अभी तक 111 गांवों और उनमें बसे 15 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों का टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों से विस्थापन नहीं हो सका है। यही कारण है कि बाघों की संख्या को बढ़ाकर खुशी जताने वाले वन विभाग के वन्यजीव प्रबंधन पर अंगुली उठ रही है।

करन तिवारी/जयपुर। सवाई माधोपुर के रणथंभौर टाइगर रिजर्व (Ranthambore Tiger Reserve) के पास उलियाना गांव में 3 नवंबर को बाघ के हमले से एक ग्रामीण की मौत हो गई थी। और अगले दिन ही ग्रामीणों ने बाघ को मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद वन विभाग के ऊपर कई तरह के सवाल खड़े हो गए थे। हालांकि जब इस मामले की जानकारी जुटाई गई तो सामने आया कि प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से गांवों का विस्थापन नहीं हो पा रहा है। जिसकी वजह से जंगलों में बाघ और ग्रामीण एक साथ रह रहे हैं। अभी भी प्रदेश के टाइगर रिजर्व में 15 हजार से ज्यादा ग्रामीणों का विस्थापन नहीं हुआ है।


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111 गांव में रहते 15 हजार से ज्यादा ग्रामीण

प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन बाघों के घर कहे जाने वाले जंगलों में रहने वाले लोगों का अभी तक विस्थापन नहीं हो सका है। इस कारण नए बाघ अपनी टेरेटरी नहीं बना पा रहे हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में बाघों की संख्या 139 है, वहीं इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। कई बार बाघों द्वारा ग्रामीणों पर हमले की खबरें भी सामने आई हैं। लेकिन अभी तक 111 गांवों और उनमें बसे 15 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों का टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों से विस्थापन नहीं (No displacement from core areas of Tiger Reserve) हो सका है। यही कारण है कि बाघों की संख्या को बढ़ाकर खुशी जताने वाले वन विभाग के वन्यजीव प्रबंधन पर अंगुली उठ रही है।


प्रदेश में बाघों की कुल संख्या 139
वन विभाग से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान अब तेजी से बाघस्थान में बदल रहा है। कुछ ही वर्षों में राजस्थान में टाइगर रिजर्व बढ़कर पांच हो गए हैं। और बाघ भी 139 के आंकड़े पर पहुंच गए हैं। प्रदेश के रणथंभौर, सरिस्का और मुकंदरा के बाद अब रामगढ़ विषधारी और धौलपुर भी टाइगर रिजर्व (Ranthambore, Sariska and Mukandra, now Ramgarh Vishdhari and Dholpur also become Tiger Reserve.) बन गए हैं। जल्द ही कुंभलगढ़ भी टाइगर रिजर्व का दर्जा पा लेगा। वन विभाग का दावा है कि बाघ धौलपुर से मुकंदरा तक 400 किलोमीटर के कॉरिडोर में स्वछंद घूमते दिखाई देंगे, पर हकीकत कुछ और दिख रही है। जैसे ही बाघ 100 के पार हुए वैसे ही उनको जंगल छोटे पड़ने लगे। ग्रामीणों से उनका संघर्ष बढ़ा। उनकी सुरक्षा कमजोर होने और शिकार तथा जहरखुरानी की घटनाओं की आशंका भी बढ़ गई। इसके पीछे बड़ा कारण टाइगर रिजर्व से गांवों का विस्थापन नहीं होना है।


बाघों की आबादी बढ़ने के साथ ही जंगल छोटा पड़ने लगा
वन विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि बाघ जंगल छोड़ बाहर निकल रहे है। वहीं बाघों के साथ प्रदेश के पांचों टाइगर रिजर्व में 111 गांव और उनमें 15 हजार से ज्यादा परिवार रह रहे हैं। यही कारण है कि बाघों की आबादी बढ़ने के साथ ही जंगल छोटा पड़ने लगा है।


नए सिरे से विस्थापन पैकेज बनाने की तैयारी
वन विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि वन विभाग प्रशासन की ओर से कई बार विस्थापन के लिए ग्रामीणों को पैकेज भी दिया है। लेकिन ग्रामीणों ने वह पैकेज लेने से इनकार कर दिया है। सूत्रों का दावा है कि वन विभाग अब दोबारा से नए सिरे से पैकेज बनाने की तैयारी कर रहा है। जिससे गांवों से ग्रामीणों का विस्थापन हो सके और बाघों को नई टेरिटरी मिल सके। और ग्रामीणों तथा बाघों के बीच का संघर्ष रोका जा सके।


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