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Death Anniversary: आज ही के दिन हुआ था उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द का निधन

munshi prem chand

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महेन्द्र मंगल/जयपुर। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद (Novel Samrat Premchand) का मूल नाम धनपतराय था। उनका जन्म ग्राम लमही (वाराणसी, उ.प्र.) (Lamhi (Varanasi, Uttar Pradesh) में 31 जुलाई, 1880 को हुआ था। घर में उन्हें नवाब कहते थे। उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली के निकटवर्ती क्षेत्र में मुस्लिम प्रभाव के कारण बोलचाल में प्रायः लोग उर्दू का प्रयोग करते थे। उन दिनों कई स्थानों पर पढ़ाई भी मदरसों में ही होती थी। इसीलिए 13 वर्ष की अवस्था तक वे उर्दू माध्यम (Urdu medium) से ही पढ़े। इसके बाद उन्होंने हिन्दी पढ़ना और लिखना सीखा।


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अंग्रेज सिपाही को झंडी के डंडे से पीटा

1898 में कक्षा दस उत्तीर्ण कर वे चुनार में सरकारी अध्यापक बन गये। उन दिनों वहां एक गोरी पल्टन भी रहती थी। एक बार अंग्रेज दल और विद्यालय के दल का फुटबाल मैच हो रहा था। विद्यालय वाले दल के जीतते ही छात्र उत्साहित होकर शोर करने लगे। इस पर एक गोरे सिपाही ने एक छात्र को लात मार दी। यह देखते ही धनपतराय ने मैदान की सीमा पर लगी झंडी उखाड़ी और उस सिपाही को पीटने लगे। यह देखकर छात्र भी मैदान में आ गये। छात्र और उनके अध्यापक का रोष देखकर अंग्रेज खिलाड़ी भाग खड़े हुए।


बाल विधवा शिवरानी से पुनर्विवाह किया
प्रेमचंद छुआछूत, ऊंचनीच, जातिभेद आदि के घोर विरोधी थे। अपनी पहली पत्नी के निधन के बाद उन्होंने एक बाल विधवा शिवरानी से पुनर्विवाह किया। वे बाल गंगाधर तिलक तथा गांधी जी से बहुत प्रभावित थे। युवकों में क्रांतिकारी चेतना का संचार करने के लिए उन्होंने इटली के स्वाधीनता सेनानी मैजिनी और गैरीबाल्डी तथा स्वामी विवेकानंद की छोटी जीवनियां लिखीं।


पहले अपना नाम ‘नवाबराय’ लिखा
अध्यापन के साथ पढ़ाई करते हुए उन्होंने बी.ए कर लिया। अब उनकी नियुक्ति हमीरपुर में जिला विद्यालय उपनिरीक्षक के पद पर हो गयी। इस दौरान उन्होंने देशभक्ति की अनेक कहानियां लिखकर उनका संकलन ‘सोजे वतन’ के नाम से प्रकाशित कराया। इसमें उन्होंने अपना नाम ‘नवाबराय’ लिखा था।


लेखकीय नाम ‘प्रेमचंद’ रख लिया
जब शासन को इसका पता लगा, तो उन्होंने नवाबराय को बुलवा भेजा। जिलाधीश ने उन्हें इसके लिए बहुत फटकारा और पुस्तक की सब प्रतियां जब्त कर जला दीं। जिलाधीश ने यह शर्त भी लगाई कि उनकी अनुमति के बिना अब वे कुछ नहीं लिखेंगे। नवाबराय लौट तो आये; पर बिना लिखे उन्हें चैन नहीं पड़ता था। अतः उन्होंने अपना लेखकीय नाम ‘प्रेमचंद’ रख लिया।


क्रांतिवीर खुदीराम बोस का चित्र कमरे में लगाया
प्रेमचंद अब तक उर्दू में लिखते थे; पर अब उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम हिन्दी को बनाया। उन्होंने अपने कमरे में क्रांतिवीर खुदीराम बोस का चित्र लगा लिया, जिसे कुछ दिन पूर्व ही फांसी दी गयी थी। उन दिनों रूस में समाजवादी क्रांति हुई थी। प्रेमचंद के मन पर उसका भी प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपने ‘प्रेमाश्रम’ नामक उपन्यास में उसकी प्रशंसा की।


‘कर्मभूमि’ नामक उपन्यास भी लिखा
प्रेमचंद जनता को विदेशी शासकों के साथ ही जमींदार और पंडे-पुजारियों जैसे शोषकों से भी मुक्त कराना चाहते थे। वे स्वयं को इस स्वाधीनता संग्राम का एक सैनिक समझते थे, जिसके हाथ में बंदूक की जगह कलम है। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को आधार बनाकर ‘कर्मभूमि’ नामक उपन्यास भी लिखा। प्रेमचंद की रचनाओं में जन-मन की आकांक्षा प्रकट होती थी। आम बोलचाल की भाषा में होने के कारण उनकी कहानियां आज भी बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं। उनके कई उपन्यासों पर फिल्म भी बनी हैं। सरल और संतोषी स्वभाव के प्रेमचंद का आठ अक्तूबर, 1936 को निधन हुआ।


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