दुर्गेश यादव/वाराणासी। जहां खुद शिव विराजमान रहते हैं वहां आदि शक्ति कैसे दूर हो सकती है। शिव की नगरी काशी में इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है। बनारस (Banaras) में एक ऐसा मंदिर है जहा पर खुद मां शैलपुत्री (Mother Shailputri) विराजमान है और शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri) के पहले दिन भक्तों को दर्शन देती है। मां शैलपुत्री के मंदिर में नवरात्र के पहले दिन आस्था का समन्दर उमड़ा हुआ है।
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माता शैलपुत्री ने यहीं पर किया था तप
मंदिर के सेवादार के अनुसार राजा शैलराज के यहां पर माता शैलपुत्री का जन्म हुआ था उनके जन्म के समय नारद जी वहां पर पहुंचे थे और कहा था कि यह पुत्री बहुत गुणवान है और भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाली होगी। इसके बाद जब माता शैलपुत्री बड़ी हुई तो वह भ्रमण पर निकल गयी । मन में शिव के प्रति आस्था थी इसलिए वह उनकी नगरी काशी पहुंची। यहां पर वरुणा नदी के किनारे की जगह उन्हें बहुत अच्छी लगी। इसके बाद माता शैलपुत्री यही पर तप करने लगी। कुछ दिन बाद पिता भी यहां आये तो देखा कि उनकी पुत्री आसन लगाकर तप कर ही है इसके बाद राजा शैलराज भी वही पर आसन लगा कर तप करने लगे। बाद में पिता व पुत्री के मंदिर का निर्माण हुआ।
पिता राजा शैलराज शिवलिंग के रुप में विराजमान
मंदिर में नीचे पिता राजा शैलराज(Raja Shailraj) शिवलिंग (Shivalinga) के रुप में विराजामन जबकि उसी गर्भगृह में माता शैलपुत्री उपर के स्थान में विराजमान है। पहले दिन माता शैलपुत्री माता पर्वती व दुर्गा के नौ रुप का दर्शन देती है। जो भक्त नवरात्र के पहले दिन मां का दर्शन कर लेता है, उसे आदि शक्ति के सभी रुपों का दर्शन मिल जाता है। मंगला आरती के बाद मंदिर का पट खोल दिया गया । इसके बाद भक्तों के दर्शन का सिलसिला जारी हो गया ।
भक्तों के सभी कष्ट होते हैं दूर
माता के दर्शन के लिए दूर- दराज से लोग आते हैं और कई किलोमीटर लंबी लाइन लगी है। माता को भक्त लाल फूल, चुनरी व नारियल का प्रसाद चढ़ाते हैं। सुहागिन यहां पर सुहाग के सामान भी चढ़ाती है। धार्मिक मान्यताओं की माने तो किसी के दांपत्य जीवन में परेशानी है तो यहां पर दर्शन करने से उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है। इसके अतिरिक्त माता अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने के साथ उनकी मुराद पूरी करती है। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और माता के दाएं हाथ में त्रिशुल व बाएं हाथ में कमल,रहता है।
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