नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud ) रविवार को रिटायर हो रहे हैं। उनके बाद जस्टिस संजीव खन्ना भारत के नए मुख्य न्यायाधीश (Justice Sanjeev Khanna is the new Chief Justice of India) होंगे। क्या आप जानते हैं कि अगर देश के चीफ जस्टिस रिटायर होते हैं तो इसके बाद वह किन-किन क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे सकते हैं और संविधान में इससे जुड़े नियम क्या हैं।
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अपना ज्ञान और अनुभव साझा करते हैं सीजेआई
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का शुक्रवार को अतिम कार्य दिवस था। वह रविवार, 10 नवंबर को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं। उनकी जगह जस्टिस संजीव खन्ना भारत के नए मुख्य न्यायाधीश होंगे, जो कि सोमवार से पद संभालेंगे। ऐसे में लोगों के मन में उत्सुकता है कि आखिर मुख्य न्यायाधीश रिटायर होने के बाद करते क्या हैं और संविधान उन्हें किन-किन क्षेत्रों में कार्य करने की इजाजत देता है।
नहीं कर सकते वकालत की प्रैक्टिस
भारत के संविधान के अनुसार मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्याय को बनाए रखने और संविधान की रक्षा (protect the constitution) करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनके कार्यकाल के दौरान निष्पक्षता और सुचिता बनी रहे, इसके लिए संविधान में प्रावधान है कि रिटायरमेंट के बाद चीफ जस्टिस वकालत की प्रैक्टिस नहीं कर सकते। संविधान के अनुच्छेद 124(7) के अनुसार, एक बार उनका कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद, CJI और अन्य सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को किसी भी भारतीय न्यायालय में वकालत करने से प्रतिबंधित (Banned from practicing law in Indian courts) कर दिया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायाधीश अपने कार्यकाल के बाद भी निष्पक्षता बनाए रखें।
क्यों होता है प्रतिबंध?
सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर प्रतिबंध लगाने के पीछे का कारण नैतिक आधार है। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता को बनाए रखने और उस पर जनता के विश्वास को कायम रखने का प्रयास किया जाता है। सेवा के बाद प्रैक्टिस पर प्रतिबंध के पीछे विचार है कि ऐसे किसी भी संदेह को खत्म कर दिया जाए कि न्यायाधीश ने अपने कार्यकाल के दौरान करियर को फायदा पहुंचाने वाला कोई फैसला किया होगा। साथ ही यह भी माना जाता है कि सेवा के बाद अगर जज प्रैक्टिस करते हैं तो यह उनके पद और गरिमा के अनुरुप नहीं होगा।
क्या होते हैं विकल्प
जजों के रिटायर होने के बाद वकालत की प्रैक्टिस पर प्रतिबंध होता है, लेकिन ऐसे अनगिनत क्षेत्र होते हैं, जहां सेवानिवृत्त जज अपनी सेवा दे सकते हैं और अपने अनुभव को साझा कर सकते हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं।
मध्यस्थता
सेवानिवृत्त जज अक्सर ऐसे मामलों में मध्यस्थता कराते हैं, जहां जटिल कानूनी मामलों को सुलझाने के लिए विशेषज्ञता की जरूरत होती है। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996,(Arbitration and Conciliation Act, 1996,) सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को मध्यस्थ के रूप में सेवा करने की अनुमति देता है।
आयोगों के प्रमुख
सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Human Rights Commission or National Green Tribunal) जैसे आयोगों के प्रमुख बन सकते हैं और अक्सर बनाए भी जाते हैं। इसके माध्यम से वह अपने अनुभवों को राष्ट्रीय महत्व और प्रशासनिक न्यायाधिकरण के मुद्दों पर लागू करते हैं।
शैक्षणिक योगदान
कई सेवानिवृत्त न्यायाधीश लॉ कॉलेजों में अध्यापन कार्य करते हैं। या फिर व्याख्यान या प्रकाशनों के लेखन के माध्यम से अपना ज्ञान साझा करते हैं।
सार्वजनिक सेवा
सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को राज्यपाल या सरकारी समितियों के सदस्य जैसे संवैधानिक पदों पर नियुक्त किया जा सकता है।
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